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"बात ऐसी न सुनी थी किसी दीवाने में / गुलाब खंडेलवाल" के अवतरणों में अंतर
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00:58, 9 जुलाई 2011 का अवतरण
बात ऐसी न सुनी थी किसी दीवाने में
ख़ुद को रो-रोके पुकारा किया वीराने में
उड़ रही है तेरी आँखों की ही जो ख़ुशबू हर ओर
रंग कुछ और है नज़रों के ठहर जाने में
हम पे चढ़ता है नशा जिसका शराब और ही है
वह न शीशे में उतरती है न पैमाने में
उम्र भर हमको तड़पने की सज़ा दे डाली
प्यार का नाम लिया था कभी अनजाने में
जा रहा है कोई मुँह फेर के अब तुझसे, गुलाब!
आ गया वह भी किसी और के बहकाने में