भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

प्रेम / एम० के० मधु

56 bytes added, 16:34, 9 जुलाई 2011
{{KKRachna
|रचनाकार=एम० के० मधु
|संग्रह=बुतों के शहर में/ एम० के० मधु
}}
{{KKCatKavita‎}}
<poem>
देखता हूं हूँ प्रेम
बसंत की हर सुबह
सरसों के पीले फूलों पर
सुनता हूं हूँ प्रेम
हर बारिश में
नन्हीं-नन्हीं बूदों बूंदों से
महसूसता हूं हूँ प्रेम
हवाओं के ताल पर
बिखरते तेरे गेसुओं में
बांटता हूं बाँटता हूँ प्रेम
जीवन में
आधा मुझे, आधा तुझे।तुझे ।
</poem>
Delete, Mover, Protect, Reupload, Uploader
53,720
edits