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"यों ख़यालों में उभरता है एक हसीन-सा नाम / गुलाब खंडेलवाल" के अवतरणों में अंतर
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फिर एक बार कहो दिल से वहीं लौट चलें | फिर एक बार कहो दिल से वहीं लौट चलें | ||
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कोई मंज़िल है मिली गुमरही में भी हमको | कोई मंज़िल है मिली गुमरही में भी हमको |
02:14, 10 जुलाई 2011 के समय का अवतरण
यों ख़यालों में उभरता है एक हसीन-सा नाम
जैसे मिल जाय भटकते हुए राही को मुकाम
हाथ भर दूर ही रहता है किनारा हरदम
हमको यह डाँड़ चलाते ही हुई उम्र तमाम
फिर एक बार कहो दिल से वहीं लौट चलें
जहाँ हुई थी सुबह अब वहीं हो प्यार की शाम
कोई मंज़िल है मिली गुमरही में भी हमको
यों तो दुनिया की निगाहों में हम रहे नाक़ाम
इस तरह गोद में काँटों की सो रहे हैं गुलाब
जैसे आया हो तड़पने से दो घड़ी आराम