भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"तुझ लब की सिफ़त / वली दक्कनी" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
 
पंक्ति 1: पंक्ति 1:
 
{{KKGlobal}}
 
{{KKGlobal}}
 
{{KKRachna
 
{{KKRachna
|रचनाकार=वली मोहम्मद 'वली'
+
|रचनाकार=वली दक्कनी
 
}}
 
}}
[[Category:गज़ल]]
+
[[Category:ग़ज़ल]]
  
 
तुझ लब की सिफ़त लाल बदख्श़ाँ सूँ कहूँगा।<br>
 
तुझ लब की सिफ़त लाल बदख्श़ाँ सूँ कहूँगा।<br>

01:45, 28 जून 2008 के समय का अवतरण

तुझ लब की सिफ़त लाल बदख्श़ाँ सूँ कहूँगा।
जादू है तेरे नैन ग़जाला सूँ कहूँगा।।

दी हक़ ने तुझे बादशाही हुस्न-नगर की।
यह किश्वरे ईराँ में सुलेमाँ सूँ कहूँगा।।

ज़ख्मी किया है मुझे तेरी पलकों की अनी ने।
ज़ख्म तेरा खंज़रे भालाँ सूँ कहूँगा।।

बेसब्र न हो ऐ 'वली'! इस दर्द सूँ हरगाह।
जल्दी सूँ तेरे दर्द की दरमाँ सूँ कहूंगा।।