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"पूरब-पश्चिम दोनों दिशि से उमड़ रही है आग / गुलाब खंडेलवाल" के अवतरणों में अंतर
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सिर देकर ही स्वतंत्रता का मूल्य चुकाना पड़ता | सिर देकर ही स्वतंत्रता का मूल्य चुकाना पड़ता | ||
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पूरब-पश्चिम दोनों दिशि से उमड़ रही है आग | पूरब-पश्चिम दोनों दिशि से उमड़ रही है आग | ||
घर में अर्गल लगा शान्ति से सोनेवाले जाग | घर में अर्गल लगा शान्ति से सोनेवाले जाग | ||
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01:21, 20 जुलाई 2011 का अवतरण
1965 के पाकिस्तानी आक्रमण पर
पूरब-पश्चिम दोनों दिशि से उमड़ रही है आग
घर में अर्गल लगा शान्ति से सोनेवाले! जाग
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सिर देकर ही स्वतंत्रता का मूल्य चुकाना पड़ता
तलवारों पर चढ़कर ही इस घर में आना पड़ता
पल-भर सोये जहाँ वहीं इतिहास पुराना पड़ता
एक चूक के लिए पीढ़ियों तक पछताना पड़ता
लाख आँसुओं से न धुलेगा फिर धरती का दाग
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निज बल का आधार न जिनको, पर के बल जीते हैं
अपमानित भी विवश, खून का घूँट वही पीते हैं
भय के बिना न प्रीति, शक्ति के बिना न्याय रीते हैं
मानव की वन्यावस्था के दिन न अभी बीते हैं
क्षीण-कंठ तू गा न सकेगा कभी शान्ति का राग
पूरब-पश्चिम दोनों दिशि से उमड़ रही है आग
घर में अर्गल लगा शान्ति से सोनेवाले जाग