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"चिन्तक के लिये अद्भुत / गुलाब खंडेलवाल" के अवतरणों में अंतर
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− | चिन्तक के | + | चिन्तक के लिए अद्भुत |
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अंत में यही दो अनुभूतियाँ टिक पायी हैं; | अंत में यही दो अनुभूतियाँ टिक पायी हैं; | ||
देव के इस काव्य में | देव के इस काव्य में | ||
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और चलचित्रों-सी क्षण-क्षण बदलती | और चलचित्रों-सी क्षण-क्षण बदलती | ||
जीवन की वास्तविकता | जीवन की वास्तविकता | ||
− | हमारे मन को | + | हमारे मन को करुणा से भर देती है. |
यों तो हमारी चेतना | यों तो हमारी चेतना | ||
− | सदा किसी-न-किसी भाव-तरंग में | + | सदा किसी-न-किसी भाव-तरंग में उफनती रहती है, |
− | वह कितनी भी उमड़े और लहराये | + | पर वह कितनी भी उमड़े और लहराये |
इन्हीं दो किनारों के बीच बहती है. | इन्हीं दो किनारों के बीच बहती है. | ||
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02:24, 22 जुलाई 2011 के समय का अवतरण
चिन्तक के लिए अद्भुत
और भावुक के लिए करुण,
अंत में यही दो अनुभूतियाँ टिक पायी हैं;
देव के इस काव्य में
बस यही दो भाव स्थायी हैं.
छोटे-से-छोटे परमाणु का घूर्णन हो
या बड़े-से बड़े तारे की परिक्रमा,
प्रकृति की प्रत्येक भंगिमा हमें विस्मय से अभिभूत कर देती है
और चलचित्रों-सी क्षण-क्षण बदलती
जीवन की वास्तविकता
हमारे मन को करुणा से भर देती है.
यों तो हमारी चेतना
सदा किसी-न-किसी भाव-तरंग में उफनती रहती है,
पर वह कितनी भी उमड़े और लहराये
इन्हीं दो किनारों के बीच बहती है.