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"सीपियाँ बटोरते हुए साँझ हो गयी / गुलाब खंडेलवाल" के अवतरणों में अंतर
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हर लहर हुँकारी भरती सो गयी. | हर लहर हुँकारी भरती सो गयी. | ||
यद्यपि मणि-मोतियों का अकूत ढेर वहीं था | यद्यपि मणि-मोतियों का अकूत ढेर वहीं था | ||
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मुझे मेरी अहमन्यता ही डुबो गयी. | मुझे मेरी अहमन्यता ही डुबो गयी. | ||
सीपियाँ बटोरते-बटोरते साँझ हो गयी. | सीपियाँ बटोरते-बटोरते साँझ हो गयी. | ||
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02:33, 22 जुलाई 2011 के समय का अवतरण
सीपियाँ बटोरते हुए साँझ हो गयी.
मछुआरे अपना-अपना जाल समेट लाये
पंछी सागर-यात्रा से घर लौट आये
सूरज की शेष किरण भी खो गयी.
सारे दिन मैंने इस किनारे से उस किनारे
कहाँ-कहाँ, किस-किसके आगे हाथ नहीं पसारे
हर लहर हुँकारी भरती सो गयी.
यद्यपि मणि-मोतियों का अकूत ढेर वहीं था
पर मेरी रुचि का उनमें एक भी नहीं था
मुझे मेरी अहमन्यता ही डुबो गयी.
सीपियाँ बटोरते-बटोरते साँझ हो गयी.