भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"फिर घनश्याम गगन में छाये / गुलाब खंडेलवाल" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=गुलाब खंडेलवाल |संग्रह=गीत-वृंदावन / गुलाब खंडे…)
 
(कोई अंतर नहीं)

04:42, 22 जुलाई 2011 के समय का अवतरण


फिर घनश्याम गगन में छाये
दूर द्वारिका से चलकर फिर ब्रजमंडल में आये

रह न सकी अपने में ऐंठी
राधा द्वार निकट जा बैठी
मुरली ध्वनि कानों में पैठी
                       अंग अंग लहराये

पीताम्बर की आभा पाई
चारों और दृष्टि दौड़ायी
पावों की आहट तो आयी
                   श्याम नहीं दिख पाये

फिर घनश्याम गगन में छाये
दूर द्वारिका से चलकर फिर ब्रजमंडल में आये