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"मुरली कैसे अधर धरूँ! / गुलाब खंडेलवाल" के अवतरणों में अंतर
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जिससे थी तब सुधा बरसती | जिससे थी तब सुधा बरसती | ||
आज वही नागिन-सी डँसती | आज वही नागिन-सी डँसती | ||
− | छूते जिसे डरूँ | + | छूते जिसे डरूँ |
जिसको लेते ही अब कर में | जिसको लेते ही अब कर में | ||
पीड़ा होती है अंतर में | पीड़ा होती है अंतर में | ||
कैसे फिर उसकी धुन पर मैं | कैसे फिर उसकी धुन पर मैं | ||
− | जग को मुग्ध करूँ | + | जग को मुग्ध करूँ |
इसको तभी धरूँ अधरों पर | इसको तभी धरूँ अधरों पर | ||
जब सँग-सँग हो राधा का स्वर! | जब सँग-सँग हो राधा का स्वर! | ||
− | जब यह मुरली सुना- | + | जब यह मुरली सुना-सुनाकर |
− | उसका मान हरूँ | + | उसका मान हरूँ |
मुरली कैसे अधर धरूँ! | मुरली कैसे अधर धरूँ! | ||
सुर तो वृन्दावन में छूटे, कैसे तान भरूँ! | सुर तो वृन्दावन में छूटे, कैसे तान भरूँ! | ||
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04:45, 22 जुलाई 2011 के समय का अवतरण
मुरली कैसे अधर धरूँ!
सुर तो वृन्दावन में छूटे, कैसे तान भरूँ!
जो मुरली सबके मन बसती
जिससे थी तब सुधा बरसती
आज वही नागिन-सी डँसती
छूते जिसे डरूँ
जिसको लेते ही अब कर में
पीड़ा होती है अंतर में
कैसे फिर उसकी धुन पर मैं
जग को मुग्ध करूँ
इसको तभी धरूँ अधरों पर
जब सँग-सँग हो राधा का स्वर!
जब यह मुरली सुना-सुनाकर
उसका मान हरूँ
मुरली कैसे अधर धरूँ!
सुर तो वृन्दावन में छूटे, कैसे तान भरूँ!