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"प्रिया को दे वियोग परिताप, / गुलाब खंडेलवाल" के अवतरणों में अंतर
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प्रिया को दे वियोग परिताप, | प्रिया को दे वियोग परिताप, | ||
− | कैसे मन माना कि कभी आये न पलटकर आप | + | कैसे मन माना कि कभी आये न पलटकर आप! |
एक क्रौंच खग का सुन क्रंदन | एक क्रौंच खग का सुन क्रंदन | ||
लिखी आदि कवि ने रामायण | लिखी आदि कवि ने रामायण | ||
कैसे सहा किये पत्थर बन | कैसे सहा किये पत्थर बन | ||
− | कवि निज प्रिया-विलाप! | + | कवि निज प्रिया-विलाप! |
राम-वियोग-विकल वैदेही | राम-वियोग-विकल वैदेही | ||
गयी आपको रुला भले ही | गयी आपको रुला भले ही | ||
पर रत्ना की सुधि आते ही | पर रत्ना की सुधि आते ही | ||
− | हाथ गये क्यों काँप! | + | हाथ गये क्यों काँप! |
जग को तो दे रहे अमृत, पर | जग को तो दे रहे अमृत, पर | ||
पत्नी तड़पा की विष पाकर | पत्नी तड़पा की विष पाकर | ||
राम-मन्त्र दे उसने कविवर | राम-मन्त्र दे उसने कविवर | ||
− | किया कौन-सा पाप! | + | किया कौन-सा पाप! |
प्रिया को दे वियोग परिताप, | प्रिया को दे वियोग परिताप, | ||
− | कैसे मन माना कि कभी आये न पलटकर आप | + | कैसे मन माना कि कभी आये न पलटकर आप! |
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04:55, 22 जुलाई 2011 के समय का अवतरण
प्रिया को दे वियोग परिताप,
कैसे मन माना कि कभी आये न पलटकर आप!
एक क्रौंच खग का सुन क्रंदन
लिखी आदि कवि ने रामायण
कैसे सहा किये पत्थर बन
कवि निज प्रिया-विलाप!
राम-वियोग-विकल वैदेही
गयी आपको रुला भले ही
पर रत्ना की सुधि आते ही
हाथ गये क्यों काँप!
जग को तो दे रहे अमृत, पर
पत्नी तड़पा की विष पाकर
राम-मन्त्र दे उसने कविवर
किया कौन-सा पाप!
प्रिया को दे वियोग परिताप,
कैसे मन माना कि कभी आये न पलटकर आप!