भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"उतरती आ रही हैं प्राण में परछाइयाँ किसकी! / गुलाब खंडेलवाल" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Vibhajhalani (चर्चा | योगदान) |
Vibhajhalani (चर्चा | योगदान) |
||
पंक्ति 20: | पंक्ति 20: | ||
कोई जैसे मुझे अब दूर से आवाज़ देता है | कोई जैसे मुझे अब दूर से आवाज़ देता है | ||
− | बुलाती हैं गुलाब आँखों की वे अमराइयाँ किसकी! | + | बुलाती हैं 'गुलाब' आँखों की वे अमराइयाँ किसकी! |
<poem> | <poem> |
01:11, 23 जुलाई 2011 के समय का अवतरण
उतरती आ रही हैं प्राण में परछाइयाँ किसकी!
हवा में गूँजती हैं प्यार की शहनाइयाँ किसकी!
ये किसकी याद ने रातों उन्हें बेसुध बनाया है!
तड़पकर रह गयीं शीशे में ये अँगड़ाइयाँ किसकी!
लिए जीने की मजबूरी खड़े हैं तीर पर हम-तुम
गले मिलकर चली लहरों में ये परछाइयाँ किसकी!
हुए देखे बहुत दिन फिर भी अक्सर याद आती हैं
वो भोली-भाली सूरत और वे अच्छाइयाँ किसकी!
कोई जैसे मुझे अब दूर से आवाज़ देता है
बुलाती हैं 'गुलाब' आँखों की वे अमराइयाँ किसकी!