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रात-रात भर
बदरा रोए
मन को भिंगोए
भर गया तन का
पोरम-पोर
बिजली चमके
राह में थमके
खोज रहे हो अपना छोर
कहाँ है जाना
कहाँ से आना
किससे बँधी है डोर
चलना-चलना
ज़रा न डरना
आएगी ही
कभी तो भोर
(रचनाकाल : 1988)