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"मेरे घर के रास्ते में आसमाँ और कहकशां हैं / श्रद्धा जैन" के अवतरणों में अंतर
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12:27, 1 अगस्त 2011 के समय का अवतरण
लहलहाते खेत, पर्वत, वादियाँ और गुलसितां हैं
मेरे घर के रास्ते में आसमाँ और कहकशां हैं
उनकी ही साजिश की कश्ती को किनारा मिल गया है
जिनको हासिल हिकमतों से घर की सारी कुंजियाँ हैं
ज़िन्दगी के सब मसाइल तूने भी झेले हैं ‘श्रद्धा’
फिर तेरी ग़ज़लों में ग़ालिब-मीर से तेवर कहाँ हैं