भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"हमाम में सब नंगे / अवनीश सिंह चौहान" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
छो (हमाम में सब नंगे /अवनीश सिंह चौहान का नाम बदलकर हमाम में सब नंगे / अवनीश सिंह चौहान कर दिया गया है)
 
पंक्ति 33: पंक्ति 33:
  
 
ऊपर से नीचे तक लगते
 
ऊपर से नीचे तक लगते
अब हमाम में सब नंगे
+
अब तो हमाम में सब नंगे
 
</poem>
 
</poem>

01:37, 12 अगस्त 2011 के समय का अवतरण

पीली-लाल आँख कर आए
उन्मादी कुछ रंग-बिरंगे
उनकी सोच-समझ का फल है
अपने घर में सारे दंगे

उस बगिया की पौध नहीं हम
ना ही उनके पथ वाले
करते ना उनकी जयकारें
जो हैं ऊँचे रथ वाले

खारिज हैं उनकी सूची से
हम जैसे सारे मनचंगे

इतनी लम्बी जीभ लिए हैं
जो चाहें सो कह डालें
सच बोले तो धमकाते हैं
खूँखार भेड़िए पालें

जिसके संग चाहें कर देते
झट बीच सड़क पर वे पंगे

पंच हमारा चुप है लेकिन
हाथ तराजू झूल रहा
निर्णय में क्या समय लगेगा
खुद ही उसको भूल रहा

ऊपर से नीचे तक लगते
अब तो हमाम में सब नंगे