भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"कभी दो क़दम, कभी दस क़दम, कभी सौ क़दम भी निकल सके / गुलाब खंडेलवाल" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Vibhajhalani (चर्चा | योगदान) (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=गुलाब खंडेलवाल |संग्रह=हर सुबह एक ताज़ा गुलाब / …) |
Vibhajhalani (चर्चा | योगदान) |
||
(इसी सदस्य द्वारा किये गये बीच के 2 अवतरण नहीं दर्शाए गए) | |||
पंक्ति 4: | पंक्ति 4: | ||
|संग्रह=हर सुबह एक ताज़ा गुलाब / गुलाब खंडेलवाल | |संग्रह=हर सुबह एक ताज़ा गुलाब / गुलाब खंडेलवाल | ||
}} | }} | ||
+ | [[category: ग़ज़ल]] | ||
<poem> | <poem> | ||
पंक्ति 10: | पंक्ति 11: | ||
तुझे देखे परदा उठाके जो किसी दूसरे की मजाल क्या! | तुझे देखे परदा उठाके जो किसी दूसरे की मजाल क्या! | ||
− | ये तो | + | ये तो आइने का कमाल है कि हज़ार रंग बदल सके |
− | तेरे प्यार में है पहुँच गया, मेरा दिल अब ऐसे | + | तेरे प्यार में है पहुँच गया, मेरा दिल अब ऐसे मुक़ाम पर |
कि न बढ़ सके, न ठहर सके, न पलट सके, न निकल सके | कि न बढ़ सके, न ठहर सके, न पलट सके, न निकल सके | ||
मेरी ज़िन्दगी है बुझी-बुझी, मेरे दिल का साज़ उदास है | मेरी ज़िन्दगी है बुझी-बुझी, मेरे दिल का साज़ उदास है | ||
− | कभी इसको ऐसी खनक तो दे, तेरे | + | कभी इसको ऐसी खनक तो दे, तेरे घुँघरुओं पे मचल सके |
जो खिले थे प्यार के रंग सौ, कभी पँखुरियों में गुलाब की | जो खिले थे प्यार के रंग सौ, कभी पँखुरियों में गुलाब की | ||
उन्हें यों हवा ने उड़ा दिया, कि पता भी आज न चल सके | उन्हें यों हवा ने उड़ा दिया, कि पता भी आज न चल सके | ||
<poem> | <poem> |
20:17, 12 अगस्त 2011 के समय का अवतरण
कभी दो क़दम, कभी दस क़दम, कभी सौ क़दम भी निकल सके
मेरे साथ उठके चले तो वे, मेरे साथ-साथ न चल सके
तुझे देखे परदा उठाके जो किसी दूसरे की मजाल क्या!
ये तो आइने का कमाल है कि हज़ार रंग बदल सके
तेरे प्यार में है पहुँच गया, मेरा दिल अब ऐसे मुक़ाम पर
कि न बढ़ सके, न ठहर सके, न पलट सके, न निकल सके
मेरी ज़िन्दगी है बुझी-बुझी, मेरे दिल का साज़ उदास है
कभी इसको ऐसी खनक तो दे, तेरे घुँघरुओं पे मचल सके
जो खिले थे प्यार के रंग सौ, कभी पँखुरियों में गुलाब की
उन्हें यों हवा ने उड़ा दिया, कि पता भी आज न चल सके