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"मन होता है पारा / रामानन्द दोषी" के अवतरणों में अंतर

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छूकर वहीं दुबारा
 
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कौन बचाकर आँख सुबह की नींद उतार गया
 
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तुम करके और इशारा
 
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होना-जाना क्या है, जैसे कल था, वैसा कल
 
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लिखकर तुम उजियारा
 
लिखकर तुम उजियारा
 
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ऐसे देखा नहीं करो !
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मन होता है पारा !
  
मन होता है पारा
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ऐसे देखा नहीं करो
ऐसे देखा नहीं करो !!
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मन होता है पारा !!
 
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23:41, 12 अगस्त 2011 के समय का अवतरण

मन होता है पारा
ऐसे देखा नहीं करो !

जाने क्या से क्या कर डाला उलट-पुलट मौसम
कभी घाव ज़्यादा दुखता है और कभी मरहम
जहाँ-जहाँ ज़्यादा दुखता है
छूकर वहीं दुबारा
ऐसे देखा नहीं करो !
मन होता है पारा !

कौन बचाकर आँख सुबह की नींद उतार गया
बूढ़े सूरज को पीछे से सीटी मार गया
शक हम पर पहले से था
तुम करके और इशारा
ऐसे देखा नहीं करो !
मन होता है पारा !

होना-जाना क्या है, जैसे कल था, वैसा कल
मेरे सन्नाटे में बस ख़ामोशी की हलचल
अँधियारे की नेमप्लेट पर
लिखकर तुम उजियारा
ऐसे देखा नहीं करो !
मन होता है पारा !

ऐसे देखा नहीं करो
मन होता है पारा !!