भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"लगा न होँठ से प्याला तो एक बार कभी / गुलाब खंडेलवाल" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=गुलाब खंडेलवाल |संग्रह=हर सुबह एक ताज़ा गुलाब / …)
 
(कोई अंतर नहीं)

21:02, 17 अगस्त 2011 के समय का अवतरण


लगा न होँठ से प्याला तो एक बार कभी
नज़र से हमने मगर पी ही ली उधार कभी

नसीब हो न सका चैन दो घड़ी के लिए
किसीने दिल का कभी छू दिया था तार कभी

'गए जो फूल ही कुम्हला तो आके क्या होगा!'
हवा ये कहना, मिले तुझको जो बहार कभी

हम उनके प्यार को समझें तो किस तरह समझें
कभी नज़र में, कभी दिल में, दिल के पार कभी

हमें तो चैन से दुनिया ने बैठने न दिया
हुआ गुलाब का काँटों में ही सिँगार कभी