भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"लुप्त हों न पलाश / नवीन सी. चतुर्वेदी" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
(नया पृष्ठ: लुप्त हों न पलाश<br /> <br /> बिन तुम्हारे होलिका त्यौहार<br /> था इक कल्पना …) |
(कोई अंतर नहीं)
|
21:52, 29 अगस्त 2011 का अवतरण
लुप्त हों न पलाश
बिन तुम्हारे होलिका त्यौहार
था इक कल्पना भर
हाट में बाक़ायदा
तुम स्थान पाते थे बराबर
अब कहाँ वो रंग
वो रंगीन भू-आकाश
लुप्त हों न पलाश
'मख-अगन' सा दृष्टिगोचर
है तुम्हारा यह कलेवर
पर तुम्हारे पात नर ने
वार डाले बीडियों पर
गाँव तो सब जानते हैं
नगर समझें काश
लुप्त हों न पलाश