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"लुप्त हों न पलाश / नवीन सी. चतुर्वेदी" के अवतरणों में अंतर

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<poem>नवगीत</poem>

12:59, 30 अगस्त 2011 का अवतरण

लुप्त हों न पलाश

बिन तुम्हारे होलिका त्यौहार
था इक कल्पना भर
हाट में बाक़ायदा
तुम स्थान पाते थे बराबर

अब कहाँ वो रंग
वो रंगीन भू-आकाश
लुप्त हों न पलाश


'मख-अगन' सा दृष्टिगोचर
है तुम्हारा यह कलेवर
पर तुम्हारे पात नर ने
वार डाले बीडियों पर

गाँव तो सब जानते हैं
नगर समझें काश
लुप्त हों न पलाश

नवगीत