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"चांदनी छत पे चल रही होगी / दुष्यंत कुमार" के अवतरणों में अंतर

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फिर मेरा ज़िक्र आ गया होगा <br>
 
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तेरे गहनों सी खनखनाती थी <br>
 
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18:55, 30 अगस्त 2011 के समय का अवतरण

चांदनी छत पे चल रही होगी
अब अकेली टहल रही होगी

फिर मेरा ज़िक्र आ गया होगा
बर्फ़-सी वो पिघल रही होगी

कल का सपना बहुत सुहाना था
ये उदासी न कल रही होगी

सोचता हूँ कि बंद कमरे में
एक शमअ-सी जल रही होगी

तेरे गहनों सी खनखनाती थी
बाजरे की फ़सल रही होगी

जिन हवाओं ने तुझ को दुलराया
उन में मेरी ग़ज़ल रही होगी