{{KKGlobal}}{{KKRachna|रचनाकार: [[=अज्ञेय]]}}[[Category:कविताएँलम्बी रचना]]{{KKPageNavigation|पीछे=असाध्य वीणा / अज्ञेय / पृष्ठ 2|आगे=असाध्य वीणा / अज्ञेय / पृष्ठ 4|सारणी=असाध्य वीणा / अज्ञेय}}[[Categoryचित्र:अज्ञेयVichitra Veena1.jpg]]<poem>मैं सुनूँ, गुनूँ, विस्मय से भर आँकू तेरे अनुभव का एक-एक अन्त:स्वर तेरे दोलन की लोरी पर झूमूँ मैं तन्मय-- गा तू : तेरी लय पर मेरी साँसें भरें, पुरें, रीतें, विश्रान्ति पायें। "गा तू ! यह वीणा रखी है : तेरा अंग -- अपंग। किन्तु अंगी, तू अक्षत, आत्म-भरित, रस-विद, तू गा : मेरे अंधियारे अंतस में आलोक जगा स्मृति का श्रुति का --
~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~तू गा, तू गा, तू गा, तू गा !
मैं सुनूँ,<br>गुनूँ,<br>विस्मय से भर आँकू<br>तेरे अनुभव का एक-एक अन्त" हाँ मुझे स्मरण है :स्वर<br>तेरे दोलन की लोरी पर झूमूँ मैं तन्मयबदली --<br>गा तू :<br>तेरी लय कौंध -- पत्तियों पर मेरी साँसें<br>वर्षा बूँदों की पटापट। भरें, पुरें, रीतें, विश्रान्ति पायें।<br>घनी रात में महुए का चुपचाप टपकना। "गा तू !<br>चौंके खग-शावक की चिहुँक। यह वीणा रखी है : तेरा अंग -शिलाओं को दुलारते वन- अपंग।<br>झरने के किन्तु अंगी, तू अक्षत, आत्मद्रुत लहरीले जल का कल-भरित,<br>निनाद। कुहरें में छन कर आती रसपर्वती गाँव के उत्सव-विद,<br>ढोलक की थाप। तू गा :<br>गड़रिये की अनमनी बाँसुरी। मेरे अंधियारे अंतस में आलोक जगा<br>स्मृति कठफोड़े का<br>ठेका। फुलसुँघनी की आतुर फुरकन : श्रुति का ओस-बूँद की ढरकन-इतनी कोमल, तरल, कि झरते-<br><br>झरते
तू गा, तू गा, तू गा, तू गा !<br><br>[[चित्र:Vichitra Veena1.jpg]]
" हाँ मुझे स्मरण है :<br>बदली -- कौंध -- पत्तियों पर वर्षा बूँदों की पटापट।<br>घनी रात में महुए का चुपचाप टपकना।<br>चौंके खग-शावक की चिहुँक।<br>शिलाओं को दुलारते वन-झरने के<br>द्रुत लहरीले जल का कल-निनाद।<br>कुहरें में छन कर आती<br>पर्वती गाँव के उत्सव-ढोलक की थाप।<br>गड़रिये की अनमनी बाँसुरी।<br>कठफोड़े का ठेका। फुलसुँघनी की आतुर फुरकन :<br>ओस-बूँद की ढरकन-इतनी कोमल, तरल, कि झरते-झरते<br>मानो हरसिंगार का फूल बन गयी।<br>भरे शरद के ताल, लहरियों की सरसर-ध्वनि।<br>कूँजो की क्रेंकार। काँद लम्बी टिट्टिभ की।<br>पंख-युक्त सायक-सी हंस-बलाका।<br>चीड़-वनो में गन्ध-अन्ध उन्मद मतंग की जहाँ-तहाँ टकराहट<br>जल-प्रपात का प्लुत एकस्वर।<br>झिल्ली-दादुर, कोकिल-चातक की झंकार पुकारों की यति में<br>संसृति की साँय-साँय।<br><br>
[[चित्र"हाँ मुझे स्मरण है :Veena_instrument.jpg]]<br><br>दूर पहाड़ों-से काले मेघों की बाढ़ हाथियों का मानों चिंघाड़ रहा हो यूथ। घरघराहट चढ़ती बहिया की। रेतीले कगार का गिरना छ्प-छपाड़। झंझा की फुफकार, तप्त, पेड़ों का अररा कर टूट-टूट कर गिरना।
"हाँ मुझे स्मरण है :<br>ओले की कर्री चपत। दूर पहाड़ोंजमे पाले-से काले मेघों ले तनी कटारी-सी सूखी घासों की बाढ़<br>टूटन। हाथियों ऐंठी मिट्टी का मानों चिंघाड़ रहा हो यूथ।<br>स्निग्ध घास में धीरे-धीरे रिसना। घरघराहट चढ़ती बहिया की।<br>रेतीले कगार का गिरना छ्पहिम-छपाड़।<br>तुषार के फाहे धरती के घावों को सहलाते चुपचाप। झंझा घाटियों में भरती गिरती चट्टानों की फुफकारगूंज -- काँपती मन्द्र -- अनुगूँज -- साँस खोयी-सी, तप्त,<br>पेड़ों का अररा कर टूटधीरे-टूट कर गिरना।<br><br>धीरे नीरव।
ओले "मुझे स्मरण है हरी तलहटी में, छोटे पेडो़ की कर्री चपत।<br>ओट ताल पर जमे पाले-ले तनी कटारीबँधे समय वन-सी सूखी घासों पशुओं की टूटन।<br>ऐंठी मिट्टी का स्निग्ध घास में धीरेनानाबिध आतुर-धीरे रिसना।<br>तृप्त पुकारें : हिम-तुषार के फाहे धरती के घावों को सहलाते चुपचाप।<br>गर्जन, घुर्घुर, चीख, भूख, हुक्का, चिचियाहट। घाटियों में भरती<br>गिरती चट्टानों की गूंज कमल-कुमुद-<br>काँपती मन्द्र -पत्रों पर चोर- अनुगूँज -- साँस खोयी-सी,<br>पैर द्रुत धावित धीरेजल-धीरे नीरव।<br><br>पंछी की चाप। थाप दादुर की चकित छलांगों की। पन्थी के घोडे़ की टाप धीर। अचंचल धीर थाप भैंसो के भारी खुर की।
"मुझे स्मरण है<br>हरी तलहटी में, छोटे पेडो़ की ओट ताल पर<br>बँधे समय वन-पशुओं की नानाबिध आतुर-तृप्त पुकारें [[चित्र:<br>Vichitra Veena1.jpg]] गर्जन, घुर्घुर, चीख, भूख, हुक्का, चिचियाहट।<br>कमल-कुमुद-पत्रों पर चोर-पैर द्रुत धावित<br[[असाध्य वीणा / अज्ञेय / पृष्ठ 4|अगला भाग >जल-पंछी की चाप।<br>]]थाप दादुर की चकित छलांगों की।<br>पन्थी के घोडे़ की टाप धीर।<br>अचंचल धीर थाप भैंसो के भारी खुर की।<br><br/poem>