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"असाध्य वीणा / अज्ञेय / पृष्ठ 3" के अवतरणों में अंतर

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द्रुत लहरीले जल का कल-निनाद।
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पर्वती गाँव के उत्सव-ढोलक की थाप।
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तेरी लय पर मेरी साँसें<br>
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यह वीणा रखी है : तेरा अंग -- अपंग।<br>
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किन्तु अंगी, तू अक्षत, आत्म-भरित,<br>
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तू गा :<br>
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मेरे अंधियारे अंतस में आलोक जगा<br>
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मानो हरसिंगार का फूल बन गयी।
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भरे शरद के ताल, लहरियों की सरसर-ध्वनि।
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कूँजो की क्रेंकार। काँद लम्बी टिट्टिभ की।
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पंख-युक्त सायक-सी हंस-बलाका।
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चीड़-वनो में गन्ध-अन्ध उन्मद मतंग की जहाँ-तहाँ टकराहट
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जल-प्रपात का प्लुत एकस्वर।
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झिल्ली-दादुर, कोकिल-चातक की झंकार पुकारों की यति में
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" हाँ मुझे स्मरण है :<br>
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"हाँ मुझे स्मरण है :  
बदली -- कौंध -- पत्तियों पर वर्षा बूँदों की पटापट।<br>
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दूर पहाड़ों-से काले मेघों की बाढ़
घनी रात में महुए का चुपचाप टपकना।<br>
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हाथियों का मानों चिंघाड़ रहा हो यूथ।
चौंके खग-शावक की चिहुँक।<br>
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घरघराहट चढ़ती बहिया की।
शिलाओं को दुलारते वन-झरने के<br>
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रेतीले कगार का गिरना छ्प-छपाड़।
द्रुत लहरीले जल का कल-निनाद।<br>
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झंझा की फुफकार, तप्त,
कुहरें में छन कर आती<br>
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पेड़ों का अररा कर टूट-टूट कर गिरना। 
पर्वती गाँव के उत्सव-ढोलक की थाप।<br>
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गड़रिये की अनमनी बाँसुरी।<br>
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कठफोड़े का ठेका। फुलसुँघनी की आतुर फुरकन :<br>
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ओस-बूँद की ढरकन-इतनी कोमल, तरल, कि झरते-झरते<br><br>
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ओले की कर्री चपत।
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जमे पाले-ले तनी कटारी-सी सूखी घासों की टूटन।
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ऐंठी मिट्टी का स्निग्ध घास में धीरे-धीरे रिसना।
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हिम-तुषार के फाहे धरती के घावों को सहलाते चुपचाप।
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घाटियों में भरती
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गिरती चट्टानों की गूंज --
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काँपती मन्द्र -- अनुगूँज -- साँस खोयी-सी,
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धीरे-धीरे नीरव। 
  
मानो हरसिंगार का फूल बन गयी।<br>
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"मुझे स्मरण है
भरे शरद के ताल, लहरियों की सरसर-ध्वनि।<br>
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हरी तलहटी में, छोटे पेडो़ की ओट ताल पर
कूँजो की क्रेंकार। काँद लम्बी टिट्टिभ की।<br>
+
बँधे समय वन-पशुओं की नानाबिध आतुर-तृप्त पुकारें :
पंख-युक्त सायक-सी हंस-बलाका।<br>
+
गर्जन, घुर्घुर, चीख, भूख, हुक्का, चिचियाहट।
चीड़-वनो में गन्ध-अन्ध उन्मद मतंग की जहाँ-तहाँ टकराहट<br>
+
कमल-कुमुद-पत्रों पर चोर-पैर द्रुत धावित
जल-प्रपात का प्लुत एकस्वर।<br>
+
जल-पंछी की चाप।
झिल्ली-दादुर, कोकिल-चातक की झंकार पुकारों की यति में<br>
+
थाप दादुर की चकित छलांगों की।
संसृति की साँय-साँय।<br><br>
+
पन्थी के घोडे़ की टाप धीर।
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अचंचल धीर थाप भैंसो के भारी खुर की। 
  
"हाँ मुझे स्मरण है :<br>
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दूर पहाड़ों-से काले मेघों की बाढ़<br>
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हाथियों का मानों चिंघाड़ रहा हो यूथ।<br>
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घरघराहट चढ़ती बहिया की।<br>
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रेतीले कगार का गिरना छ्प-छपाड़।<br>
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झंझा की फुफकार, तप्त,<br>
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पेड़ों का अररा कर टूट-टूट कर गिरना।<br><br>
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ओले की कर्री चपत।<br>
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जमे पाले-ले तनी कटारी-सी सूखी घासों की टूटन।<br>
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ऐंठी मिट्टी का स्निग्ध घास में धीरे-धीरे रिसना।<br>
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हिम-तुषार के फाहे धरती के घावों को सहलाते चुपचाप।<br>
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घाटियों में भरती<br>
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गिरती चट्टानों की गूंज --<br>
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काँपती मन्द्र -- अनुगूँज -- साँस खोयी-सी,<br>
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धीरे-धीरे नीरव।<br><br>
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"मुझे स्मरण है<br>
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हरी तलहटी में, छोटे पेडो़ की ओट ताल पर<br>
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बँधे समय वन-पशुओं की नानाबिध आतुर-तृप्त पुकारें :<br>
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गर्जन, घुर्घुर, चीख, भूख, हुक्का, चिचियाहट।<br>
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कमल-कुमुद-पत्रों पर चोर-पैर द्रुत धावित<br>
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थाप दादुर की चकित छलांगों की।<br>
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पन्थी के घोडे़ की टाप धीर।<br>
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अचंचल धीर थाप भैंसो के भारी खुर की।<br><br>
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11:11, 3 सितम्बर 2011 के समय का अवतरण

Vichitra Veena1.jpg

मैं सुनूँ,
गुनूँ,
विस्मय से भर आँकू
तेरे अनुभव का एक-एक अन्त:स्वर
तेरे दोलन की लोरी पर झूमूँ मैं तन्मय--
गा तू :
तेरी लय पर मेरी साँसें
भरें, पुरें, रीतें, विश्रान्ति पायें।
"गा तू !
यह वीणा रखी है : तेरा अंग -- अपंग।
किन्तु अंगी, तू अक्षत, आत्म-भरित,
रस-विद,
तू गा :
मेरे अंधियारे अंतस में आलोक जगा
स्मृति का
श्रुति का --

तू गा, तू गा, तू गा, तू गा !

" हाँ मुझे स्मरण है :
बदली -- कौंध -- पत्तियों पर वर्षा बूँदों की पटापट।
घनी रात में महुए का चुपचाप टपकना।
चौंके खग-शावक की चिहुँक।
शिलाओं को दुलारते वन-झरने के
द्रुत लहरीले जल का कल-निनाद।
कुहरें में छन कर आती
पर्वती गाँव के उत्सव-ढोलक की थाप।
गड़रिये की अनमनी बाँसुरी।
कठफोड़े का ठेका। फुलसुँघनी की आतुर फुरकन :
ओस-बूँद की ढरकन-इतनी कोमल, तरल, कि झरते-झरते

Vichitra Veena1.jpg

मानो हरसिंगार का फूल बन गयी।
भरे शरद के ताल, लहरियों की सरसर-ध्वनि।
कूँजो की क्रेंकार। काँद लम्बी टिट्टिभ की।
पंख-युक्त सायक-सी हंस-बलाका।
चीड़-वनो में गन्ध-अन्ध उन्मद मतंग की जहाँ-तहाँ टकराहट
जल-प्रपात का प्लुत एकस्वर।
झिल्ली-दादुर, कोकिल-चातक की झंकार पुकारों की यति में
संसृति की साँय-साँय।

"हाँ मुझे स्मरण है :
दूर पहाड़ों-से काले मेघों की बाढ़
हाथियों का मानों चिंघाड़ रहा हो यूथ।
घरघराहट चढ़ती बहिया की।
रेतीले कगार का गिरना छ्प-छपाड़।
झंझा की फुफकार, तप्त,
पेड़ों का अररा कर टूट-टूट कर गिरना।

ओले की कर्री चपत।
जमे पाले-ले तनी कटारी-सी सूखी घासों की टूटन।
ऐंठी मिट्टी का स्निग्ध घास में धीरे-धीरे रिसना।
हिम-तुषार के फाहे धरती के घावों को सहलाते चुपचाप।
घाटियों में भरती
गिरती चट्टानों की गूंज --
काँपती मन्द्र -- अनुगूँज -- साँस खोयी-सी,
धीरे-धीरे नीरव।

"मुझे स्मरण है
हरी तलहटी में, छोटे पेडो़ की ओट ताल पर
बँधे समय वन-पशुओं की नानाबिध आतुर-तृप्त पुकारें :
गर्जन, घुर्घुर, चीख, भूख, हुक्का, चिचियाहट।
कमल-कुमुद-पत्रों पर चोर-पैर द्रुत धावित
जल-पंछी की चाप।
थाप दादुर की चकित छलांगों की।
पन्थी के घोडे़ की टाप धीर।
अचंचल धीर थाप भैंसो के भारी खुर की।

Vichitra Veena1.jpg

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