भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"बड़े दिनों बाद / रमेश तैलंग" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रमेश तैलंग |संग्रह=इक्यावन बालगीत / रमेश तैलंग }}…)
 
 
पंक्ति 18: पंक्ति 18:
 
चिड़िया ने कंठ खोल
 
चिड़िया ने कंठ खोल
 
ख़ूब चहचहाया
 
ख़ूब चहचहाया
 
 
सन्नाटा देखता रहा
 
सन्नाटा देखता रहा
 
सकपकाया
 
सकपकाया

09:56, 6 सितम्बर 2011 के समय का अवतरण

बड़े दिनों बाद खिला
गमले में फूल ।

रंग भरे मन में
उम्मीद नई जागी
बैठी थी अब तक
उदासी जो, भागी
चलो, किसी तरह झड़ी
जमी हुई धूल ।

चिड़िया ने कंठ खोल
ख़ूब चहचहाया
सन्नाटा देखता रहा
सकपकाया
चौकन्नी धूप
गई पर्दे पर झूल ।
बड़े दिनों बाद खिला
गमले में फूल ।