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"जाने क्या दुश्मनी है शाम के साथ / 'अना' क़ासमी" के अवतरणों में अंतर

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जाने क्या दुश्मनी है शाम के साथ  
 
जाने क्या दुश्मनी है शाम के साथ  
 
दिल भी टूटा पड़ा है जाम के साथ  
 
दिल भी टूटा पड़ा है जाम के साथ  
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बेतकल्लुफ़ बहस हों मकतब में  
 
बेतकल्लुफ़ बहस हों मकतब में  
इल्म घटता है एहतराम के साथ
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इल्म घटता है एहतराम के साथ</poem>

15:42, 7 सितम्बर 2011 का अवतरण

जाने क्या दुश्मनी है शाम के साथ
दिल भी टूटा पड़ा है जाम के साथ

लफ़्ज़ होने लगे हैं सफबस्ता
कौन उलझा ख़्याले-ख़ाम के साथ

काम की बात बस नहीं होती
रोज़ मिलते हैं एहतमाम के साथ

कितना टूटा हुआ हूं अन्दर से
फिर कमर झुक गयी सलाम के साथ

बज़्म आगे बढ़े ये नामुमकिन
मुक्तदी उठ गये इमाम के साथ

इन्क़लाब अब नहीं है थमने का
शाहज़ादे भी हैं गुलाम के साथ

बेतकल्लुफ़ बहस हों मकतब में
इल्म घटता है एहतराम के साथ