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"सत्य अपना अपना / रमा द्विवेदी" के अवतरणों में अंतर

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(रमा द्विवेदी की रचनाएं)
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मंथन करो स्वयं
 
मंथन करो स्वयं

22:31, 16 अगस्त 2007 का अवतरण

सत्य, सत्य है
झूठ भी अपने आप में
सत्य है।
सबको अपना सत्य
स्वयं ही जीना पडता है।
सत्य अच्छा या बुरा होता नहीं
उसे रूप देता है इन्सान ।
आधुनिक जीवन का सत्य
टुकडों-टुकडों में बंट गया है।
उपर से नीचे तक
बडे से छोटे तक
कौन हैं वे? जिनका झूठ, उनका सत्य न हो।
सभी अपने सत्य को जीने में उलझे हैं
मकडी के जाल जैसा
नहीं निकल पाता कोई
अपने सत्य से ।
स्वयं ही तो रचा था
सत्य का चक्रब्यूह
अब नही भेद पाते इसे
आना पडेगा फ़िर
किसी अर्जुन को ?
सत्य का चक्र्ब्यूह भेदने के लिए
तब तक करो इन्त्जार
सहते रहो खुद क संताप
यह तुम्हारा अपना है
किसी ने दिया नहीं ।
समेट लो टुकडे- टुकडे सत्य को
समाहित कर लो अपने अन्दर
विष अमृत के घूंट
मंथन करो स्वयं ही
सत्य के दर्शन पा जावोगे।
बिखर- बिखर कर जीना छोडो
पूर्णता में जिवो
इसी में जीवन की अमरता है
और
संसार का सुख भी ।