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"दोस्ती (1) / हरीश बी० शर्मा" के अवतरणों में अंतर
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मुसाफिर ने पूछा
दोस्ती करोगे मुझसे ?
मैंने कहा
निभा सकोगे मुझे ?
मैं जानता था
मेरी दोस्ती का हक किसी नत्थू-खैरे को नहीं था
हां..., इतना जरूर है
आज तक नहीं जान पाया
उसने मुझे क्यों आमंत्रित किया।