"संवेदनाएं चुक गईं / रमा द्विवेदी" के अवतरणों में अंतर
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कोशिशें तुमने बहुत कीं,<br> | कोशिशें तुमने बहुत कीं,<br> | ||
हमको मिटाने के लिए ।<br> | हमको मिटाने के लिए ।<br> | ||
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हमें पत्थर बनाने के लिए ॥<br> | हमें पत्थर बनाने के लिए ॥<br> | ||
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जो हर तूफ़ां को झेल जाता है ।<br> | जो हर तूफ़ां को झेल जाता है ।<br> | ||
अंकित हो जाती हर तस्वीर उस पर<br> | अंकित हो जाती हर तस्वीर उस पर<br> | ||
− | + | फिर नहीं मिट पाता है ॥<br> | |
शायद तुम्हें मालूम न हो,<br> | शायद तुम्हें मालूम न हो,<br> | ||
पत्थर का निशान होता है अमिट।<br> | पत्थर का निशान होता है अमिट।<br> | ||
− | सदियों बाद | + | सदियों बाद पढ़ सकते हैं उसे, <br> |
उसका इतिहास होता है अमिट ॥<br> | उसका इतिहास होता है अमिट ॥<br> | ||
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वक्त वो जाता रहा ।<br> | वक्त वो जाता रहा ।<br> | ||
अब हम कहेंगे तुम सुनोगे,<br> | अब हम कहेंगे तुम सुनोगे,<br> | ||
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चाहे जितना आजमां लो,<br> | चाहे जितना आजमां लो,<br> | ||
देखेंगे कितना जोर तुम में है?<br> | देखेंगे कितना जोर तुम में है?<br> | ||
− | + | मोड़ देंगे रुख हवा का,<br> | |
हौसला इतना अभी भी हम में है ॥<br> | हौसला इतना अभी भी हम में है ॥<br> |
23:08, 12 अक्टूबर 2008 का अवतरण
संवेदनाएं चुक गईं,
अब और सह सकते नहीं ।
बन गया पत्थर दिल हमारा,
रहमोकरम तुम पे कर सकते नहीं ॥
कोशिशें तुमने बहुत कीं,
हमको मिटाने के लिए ।
ज़ुल्म तुमने क्या- क्या किये?
हमें पत्थर बनाने के लिए ॥
हमारा दिल वो पत्थर है,
जो हर तूफ़ां को झेल जाता है ।
अंकित हो जाती हर तस्वीर उस पर
फिर नहीं मिट पाता है ॥
शायद तुम्हें मालूम न हो,
पत्थर का निशान होता है अमिट।
सदियों बाद पढ़ सकते हैं उसे,
उसका इतिहास होता है अमिट ॥
तुमने जो विष बीज बोया है,
कई पीढियां मूल्य चुकाएंगी।
अब भी नहीं संभलोगे गर,
कायर तुम्हें बतलाएंगी ॥
तुमने रचा इतिहास जो,
कैसे बदल अब पाओगे ?
सदियों के इस पाप को,
किस पुण्य से धो पाओगे?
तुम करोगे जुल्म हम सहते रहेंगे-
वक्त वो जाता रहा ।
अब हम कहेंगे तुम सुनोगे,
वक्त ऐसा आ गया ॥
चाहे जितना आजमां लो,
देखेंगे कितना जोर तुम में है?
मोड़ देंगे रुख हवा का,
हौसला इतना अभी भी हम में है ॥