भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"स्वप्न सागर-पार का बेकार है /वीरेन्द्र खरे अकेला" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=वीरेन्द्र खरे 'अकेला' |संग्रह=शेष बची चौथाई रात /…)
 
(कोई अंतर नहीं)

20:46, 12 सितम्बर 2011 के समय का अवतरण

स्वप्न सागर-पार का बेकार है
यार नौका से ख़फ़ा पतवार है

कान तेरे भर गया शायद कोई
बदला बदला सा तेरा व्यवहार है

है बहुत कड़की, उधारी है बहुत
उसपे ये सिर पर खड़ा त्यौहार है

बचके तूफ़ाँ से निकल आए तो क्या
सामने शोलों से पूरित पार है

लिस्ट आदर्शों की लटकी है जहाँ
वह बहुत सीलन भरी दीवार है

एक भी दिखती न खुशियों की दुकाँ
यह जगत पीड़ाओं का बाज़ार है

ऐ ‘अकेला’ बेच दे ईमान जो
आज कल सुख का वही हक़दार है