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"मैं मुसाफिर ही रहूँगा उसने एसा क्यूँ कहा / पुरुषोत्तम अब्बी "आज़र"" के अवतरणों में अंतर

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मैं मुसाफिर ही  रहूँगा  उसने  एसा क्यूँ कहा
 
मैं मुसाफिर ही  रहूँगा  उसने  एसा क्यूँ कहा
एक दिन मैं ढूंड लूंगा अपनी मंजिल का पता
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एक दिन मैं ढूंड लूंगा अपनी मंज़िल का पता
  
 
दौड़ कर उसका चिपटना मेरी बाहें थामना
 
दौड़ कर उसका चिपटना मेरी बाहें थामना

10:03, 16 सितम्बर 2011 का अवतरण


मैं मुसाफिर ही रहूँगा उसने एसा क्यूँ कहा
एक दिन मैं ढूंड लूंगा अपनी मंज़िल का पता

दौड़ कर उसका चिपटना मेरी बाहें थामना
कांपते होंठो ने उसके वो सभी कुछ कह दिया

हर नज़र का अपना-अपना देखने का ढंग है
वो बला की खूबसूरत तुमको कोई शक है क्या

सच कहा कड़वा लगेगा चाहे रस तुम घोल दो
ले रहे हैं हम मज़ा अब झूठ के ही स्वाद का

जानते हैं सब इसे और तू भी "आज़र" ले
खाक में तबदील इक दिन यह बदन हो जाएगा