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"किसने ये हमको ख़्वाब में इतना डरा दिया / पुरुषोत्तम अब्बी "आज़र"" के अवतरणों में अंतर
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जालिम ने नाम बस्ती में अपना लिखा दिया | जालिम ने नाम बस्ती में अपना लिखा दिया | ||
11:46, 16 सितम्बर 2011 के समय का अवतरण
किसने ये हमको ख़्वाब में इतना डरा दिया
बिस्तर के पास जैसे के चेहरा बना दिया
जैसे कि खुद के क़त्ल का मुज़रिम रहा हूँ मैं
इलज़ाम उसने मुझ पे ही सारा लगा दिया
शोलों से भस्म करने कि तोहमत न दो हमें
हमने तो मन कि आग से दीपक जला दिया
अब रहमतों कि बात भी करना मुहाल है
जालिम ने नाम बस्ती में अपना लिखा दिया
"आज़र" ये दर्द क्यूँ तेरे लफ़्जों में भर गया
जिसको ग़ज़ल सुनाई उसी को रुला दिया