भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"मज़ा आ रहा है ग़ज़ल में तेरी / पुरुषोत्तम अब्बी "आज़र"" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: मज़ा आ रहा है ग़ज़ल में तेरी लगे जैसे मुख में हो मीठी डली हवा आंधी …)
(कोई अंतर नहीं)

14:23, 16 सितम्बर 2011 का अवतरण

मज़ा आ रहा है ग़ज़ल में तेरी लगे जैसे मुख में हो मीठी डली

हवा आंधी बन-बन के कैसे चली उड़ा ले गई मिट्टी धूलों भरी

लटों को जो तूने यूं झटका दिया पता बेखबर किस पे बिजली गिरी

निगाहों में कैसी ये मदहोशियाँ हमें मार डालें न बे मौत ही

पुकारा जो तुमने तो मैं आ गया मेरी बात "आज़र" न तुमने सुनी