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"मैं मुसाफिर ही रहूँगा उसने एसा क्यूँ कहा / पुरुषोत्तम अब्बी "आज़र"" के अवतरणों में अंतर
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एक दिन मैं ढूंड लूंगा अपनी मंज़िल का पता | एक दिन मैं ढूंड लूंगा अपनी मंज़िल का पता | ||
− | दौड़ कर उसका चिपटना मेरी बाहें | + | दौड़ कर उसका चिपटना मेरी बाहें थामकर |
कांपते होंठो ने उसके वो सभी कुछ कह दिया | कांपते होंठो ने उसके वो सभी कुछ कह दिया | ||
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ले रहे हैं हम मज़ा अब झूठ के ही स्वाद का | ले रहे हैं हम मज़ा अब झूठ के ही स्वाद का | ||
− | जानते हैं सब इसे और तू भी "आज़र" ले | + | जानते हैं सब इसे और तू भी "आज़र" जान ले |
खाक में तबदील इक दिन यह बदन हो जाएगा | खाक में तबदील इक दिन यह बदन हो जाएगा | ||
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16:39, 17 सितम्बर 2011 के समय का अवतरण
मैं मुसाफिर ही रहूँगा उसने एसा क्यूँ कहा
एक दिन मैं ढूंड लूंगा अपनी मंज़िल का पता
दौड़ कर उसका चिपटना मेरी बाहें थामकर
कांपते होंठो ने उसके वो सभी कुछ कह दिया
हर नज़र का अपना-अपना देखने का ढंग है
वो बला की खूबसूरत तुमको कोई शक है क्या
सच कहा कड़वा लगेगा चाहे रस तुम घोल दो
ले रहे हैं हम मज़ा अब झूठ के ही स्वाद का
जानते हैं सब इसे और तू भी "आज़र" जान ले
खाक में तबदील इक दिन यह बदन हो जाएगा