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"मज़ा आ रहा है ग़ज़ल में तेरी / पुरुषोत्तम अब्बी "आज़र"" के अवतरणों में अंतर

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मज़ा  आ रहा है ग़ज़ल में तेरी
 
लगे जैसे मुख में हो मीठी डली
 
लगे जैसे मुख में हो मीठी डली
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पुकारा जो तुमने तो मैं आ गया
 
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मेरी बात "आज़र" न तुमने सुनी
 
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18:13, 17 सितम्बर 2011 के समय का अवतरण


मज़ा आ रहा है ग़ज़ल में तेरी
लगे जैसे मुख में हो मीठी डली

हवा आंधी बन-बन के कैसे चली
उड़ा ले गई मिट्टी धूलों भरी

लटों को जो तूने यूं झटका दिया
पता बेखबर किस पे बिजली गिरी

निगाहों में कैसी ये मदहोशियाँ
हमें मार डालें न बे मौत ही

पुकारा जो तुमने तो मैं आ गया
मेरी बात "आज़र" न तुमने सुनी