भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"अपनी छवि बनाई के जो मैं पी के पास गई / अमीर खुसरो" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Rajeevnhpc102 (चर्चा | योगदान) (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अमीर खुसरो }} {{KKCatKavita}}<poem> अपनी छवि बनाई के जो मैं पी क…) |
|||
पंक्ति 6: | पंक्ति 6: | ||
अपनी छवि बनाई के जो मैं पी के पास गई, | अपनी छवि बनाई के जो मैं पी के पास गई, | ||
जब छवि देखी पीहू की तो अपनी भूल गई। | जब छवि देखी पीहू की तो अपनी भूल गई। | ||
− | छाप तिलक सब छीन्हीं रे मोसे नैंना मिलाई के | + | |
+ | छाप तिलक सब छीन्हीं रे मोसे नैंना मिलाई के, | ||
बात अघम कह दीन्हीं रे मोसे नैंना मिला के। | बात अघम कह दीन्हीं रे मोसे नैंना मिला के। | ||
बल बल जाऊँ मैं तोरे रंग रिजना | बल बल जाऊँ मैं तोरे रंग रिजना |
19:10, 7 अक्टूबर 2011 के समय का अवतरण
अपनी छवि बनाई के जो मैं पी के पास गई,
जब छवि देखी पीहू की तो अपनी भूल गई।
छाप तिलक सब छीन्हीं रे मोसे नैंना मिलाई के,
बात अघम कह दीन्हीं रे मोसे नैंना मिला के।
बल बल जाऊँ मैं तोरे रंग रिजना
अपनी सी रंग दीन्हीं रे मोसे नैंना मिला के।
प्रेम वटी का मदवा पिलाय के मतवारी कर दीन्हीं रे
मोसे नैंना मिलाई के।
गोरी गोरी बईयाँ हरी हरी चूरियाँ
बइयाँ पकर हर लीन्हीं रे मोसे नैंना मिलाई के।
खुसरो निजाम के बल-बल जइए
मोहे सुहागन किन्हीं रे मोसे नैंना मिलाई के।
ऐ री सखी मैं तोसे कहूँ, मैं तोसे कहूँ, छाप तिलक....।