भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"आखर री औकात, पृष्ठ- 54 / सांवर दइया" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Neeraj Daiya (चर्चा | योगदान) ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सांवर दइया |संग्रह=आखर री औकात / सां...' के साथ नया पन्ना बनाया) |
(कोई अंतर नहीं)
|
18:08, 23 अक्टूबर 2011 के समय का अवतरण
लाम्बो मारग
अबखायां भर्योड़ो
-चाल, तूं चाल !
०००
थकां सूरज
दिसावां काळी व्हैगी
जीवारो किंयां ?
०००
ऐ सै इकडौळा
पण आस जगावै
तीजी ताकत
०००
नूंवो जरूर-
सावळ जाणूं थांरै
छळ छंदा नै
०००
आज म्हे ऊभा
आं ई कटघड़ा में
काल थे व्हौला
०००