"पृथ्वी 2000 / प्रमोद कौंसवाल" के अवतरणों में अंतर
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हाट में रही न बाज़ार में | हाट में रही न बाज़ार में | ||
दर्द में रही न करुणा में | दर्द में रही न करुणा में | ||
उफ् भरती शांत और विन्रम इस हवा में | उफ् भरती शांत और विन्रम इस हवा में | ||
− | पृथ्वी | + | पृथ्वी कहाँ से भरूँ अपने भीतर |
− | + | कहाँ से आप | |
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हमारी घाटी में नहीं पसरी | हमारी घाटी में नहीं पसरी | ||
खेतों में नहीं खिली | खेतों में नहीं खिली | ||
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वह घोड़ों पर चाबुक की तरह बजती है | वह घोड़ों पर चाबुक की तरह बजती है | ||
नंगे पैरों के नीचे | नंगे पैरों के नीचे | ||
− | अंगारों सी फैलती है | + | अंगारों-सी फैलती है |
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याद रखो | याद रखो | ||
यही पृथ्वी है | यही पृथ्वी है | ||
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इस पर तुम आत्मा की तरह क़ैद हो जाओ | इस पर तुम आत्मा की तरह क़ैद हो जाओ | ||
इसे भरो अपने भीतर | इसे भरो अपने भीतर | ||
− | + | झाँको यहाँ से देखो कितनी | |
नश्वर है | नश्वर है | ||
यह पृथ्वी | यह पृथ्वी | ||
− | + | यहाँ द्रास है करगिल है | |
सियाचिन है हेब्रान है | सियाचिन है हेब्रान है | ||
− | इससे ज़्यादा सुरक्षित | + | इससे ज़्यादा सुरक्षित कहाँ है पृथ्वी |
इसके एक छोर पर | इसके एक छोर पर | ||
मोनिका में सना | मोनिका में सना | ||
मौत के दानवों को | मौत के दानवों को | ||
− | भीख़ को तश्तरियों में | + | भीख़ को तश्तरियों में बाँटता ह्वाइट हाउस है |
दूसरे में दिल्ली के शराबख़ाने में मूतकर | दूसरे में दिल्ली के शराबख़ाने में मूतकर | ||
बैठा धोतीदारी है | बैठा धोतीदारी है | ||
मथुरा की रंडियों और अयोध्या के पंडों से घिरी संसद है | मथुरा की रंडियों और अयोध्या के पंडों से घिरी संसद है | ||
− | इससे ज़्यादा पवित्र | + | इससे ज़्यादा पवित्र कहाँ है पृथ्वी |
इस पृथ्वी को अपने भीतर भरो | इस पृथ्वी को अपने भीतर भरो | ||
अंत:मन में भरो | अंत:मन में भरो | ||
इस पृथ्वी के बाद कोई पृथ्वी नहीं है | इस पृथ्वी के बाद कोई पृथ्वी नहीं है | ||
− | अपना | + | अपना मुँह धो लो! |
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09:26, 25 अक्टूबर 2011 के समय का अवतरण
हाट में रही न बाज़ार में
दर्द में रही न करुणा में
उफ् भरती शांत और विन्रम इस हवा में
पृथ्वी कहाँ से भरूँ अपने भीतर
कहाँ से आप
हमारी घाटी में नहीं पसरी
खेतों में नहीं खिली
आंगन में नहीं उगी
सिवाय इसके कि विरासत में मिली
ऐसी पृथ्वी
वह ग़ुस्से में बजती है
नगाड़े की तरह
चौराहे पर दिखती है मज़मे की तरह
वह घोड़ों पर चाबुक की तरह बजती है
नंगे पैरों के नीचे
अंगारों-सी फैलती है
याद रखो
यही पृथ्वी है
मक़्क़ारी बेमानी ग़रीबी
झूठ जेल हत्या महामारी
यही इसकी देह है
इस पर तुम आत्मा की तरह क़ैद हो जाओ
इसे भरो अपने भीतर
झाँको यहाँ से देखो कितनी
नश्वर है
यह पृथ्वी
यहाँ द्रास है करगिल है
सियाचिन है हेब्रान है
इससे ज़्यादा सुरक्षित कहाँ है पृथ्वी
इसके एक छोर पर
मोनिका में सना
मौत के दानवों को
भीख़ को तश्तरियों में बाँटता ह्वाइट हाउस है
दूसरे में दिल्ली के शराबख़ाने में मूतकर
बैठा धोतीदारी है
मथुरा की रंडियों और अयोध्या के पंडों से घिरी संसद है
इससे ज़्यादा पवित्र कहाँ है पृथ्वी
इस पृथ्वी को अपने भीतर भरो
अंत:मन में भरो
इस पृथ्वी के बाद कोई पृथ्वी नहीं है
अपना मुँह धो लो!