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"ढोंग की दुविधा / प्रमोद कौंसवाल" के अवतरणों में अंतर

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पहाड़ों के पीछे पहाड़ हैं  
 
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पहाड़ों के पीछे और बड़े पहाड़
 
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उनके पीछे और भी बड़े
 
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मुँह छुपाने के लिए
 
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पहाड़ ही पहाड़
 
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जब शरण न दे पहाड़
 
जब शरण न दे पहाड़
 
 
तब पहाड़ों की बनाई सुरंगे हैं
 
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सुरंगे भर जाएंगी  
 
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तो गंगामाईजी कहाँ जाऊंगा  
 
तो गंगामाईजी कहाँ जाऊंगा  
 
 
शहरों में ठहरे शराबियों के ठेये
 
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गाँवों में टिंचरीख़ोर हैं
 
गाँवों में टिंचरीख़ोर हैं
 
 
टी.वी. पर आपने देखा होगा
 
टी.वी. पर आपने देखा होगा
 
 
आश्रम भी मेरा उजड़ गया
 
आश्रम भी मेरा उजड़ गया
 
 
अब कहाँ जाऊँ मैं
 
अब कहाँ जाऊँ मैं
 
 
कोई भीख़ नहीं मांग रहा  
 
कोई भीख़ नहीं मांग रहा  
 
 
जंगल जल नहीं रहे
 
जंगल जल नहीं रहे
 
 
ठेकेदार भी चुप हैं
 
ठेकेदार भी चुप हैं
 
 
अब मैं किस पर लिखूँ
 
अब मैं किस पर लिखूँ
 
 
मैंने मुँह छिपा लिया
 
मैंने मुँह छिपा लिया
 
 
सुरंग भी देख ली
 
सुरंग भी देख ली
 
 
इधर मेरे हाथ में बजता
 
इधर मेरे हाथ में बजता
 
 
कनस्तर है एक ख़ाली
 
कनस्तर है एक ख़ाली
 
 
उसकी आवाज़ भी
 
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कोई सुन नहीं रहा।
 
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09:32, 25 अक्टूबर 2011 के समय का अवतरण

पहाड़ों के पीछे पहाड़ हैं
पहाड़ों के पीछे और बड़े पहाड़
उनके पीछे और भी बड़े
मुँह छुपाने के लिए
पहाड़ ही पहाड़

जब शरण न दे पहाड़
तब पहाड़ों की बनाई सुरंगे हैं
सुरंगे भर जाएंगी
तो गंगामाईजी कहाँ जाऊंगा
शहरों में ठहरे शराबियों के ठेये
गाँवों में टिंचरीख़ोर हैं
टी.वी. पर आपने देखा होगा
आश्रम भी मेरा उजड़ गया
अब कहाँ जाऊँ मैं
कोई भीख़ नहीं मांग रहा
जंगल जल नहीं रहे
ठेकेदार भी चुप हैं
अब मैं किस पर लिखूँ
मैंने मुँह छिपा लिया
सुरंग भी देख ली
इधर मेरे हाथ में बजता
कनस्तर है एक ख़ाली
उसकी आवाज़ भी
कोई सुन नहीं रहा।