भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"वर्ना मत कहना / पद्मजा शर्मा" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
आशिष पुरोहित (चर्चा | योगदान) ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=पद्मजा शर्मा |संग्रह=सदी के पार / पद...' के साथ नया पन्ना बनाया) |
आशिष पुरोहित (चर्चा | योगदान) |
||
पंक्ति 16: | पंक्ति 16: | ||
कहो तो कहना वैसे | कहो तो कहना वैसे | ||
जैसे कहता था लहना | जैसे कहता था लहना | ||
− | सुन ले हर | + | सुन ले हर दिशा |
बिन कहे ही प्रेम | बिन कहे ही प्रेम | ||
14:01, 1 नवम्बर 2011 के समय का अवतरण
सुनो तो वैसे सुनना
जैसे बरसों से
सुन रहा था लहना
बिन कहे ही प्रेम
वर्ना मत सुनना
कहो तो कहना वैसे
जैसे कहता था लहना
सुन ले हर दिशा
बिन कहे ही प्रेम
वर्ना मत कहना
करो तो करना वैसे प्रेम
जैसे कर रहा था लहना
पूजा के दीपक सा
धीमे-धीमे जल रहा था लहना
वर्ना मत करना प्रेम
मृत्यु की खाई में
यादों के संग
चल रहा था लहना
उसे किसी से कुछ नहीं था कहना
क्योंकि वह था लहना
प्रेम का नाम है सहना
और वह होता है लहना
सहो तो सहना ऐसे
जैसे सह रहा था लहना
वर्ना मत कहना
मरो तो मरना ऐसे
जैसे ख़ुशी-ख़ुशी देकर अपने को
मर गया था लहना
मरकर अमर हो गया लहना
कहना तो कहना लहना
वर्ना मत कहना
प्रेम।