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"नींव जो भरते रहे हैं आपके आवास की / द्विजेन्द्र 'द्विज'" के अवतरणों में अंतर
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ज़िन्दगी उनकी कथा है आज भी बनवास की | ज़िन्दगी उनकी कथा है आज भी बनवास की | ||
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जिन परिन्दों की उड़ाने कुन्द कर डाली गईं | जिन परिन्दों की उड़ाने कुन्द कर डाली गईं | ||
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तोड़कर मासूम सपने आने वाली पौध के | तोड़कर मासूम सपने आने वाली पौध के | ||
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नींव रक्खेंगे भला वो कौन से इतिहास की | नींव रक्खेंगे भला वो कौन से इतिहास की | ||
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वह तो उनके शोर में ही डूब कर घुटता रहा | वह तो उनके शोर में ही डूब कर घुटता रहा | ||
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क़हक़हों ने कब सुनी दारुण कथा संत्रास की | क़हक़हों ने कब सुनी दारुण कथा संत्रास की | ||
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तब यक़ीनन एक बेहतर आज मिल पाता हमें | तब यक़ीनन एक बेहतर आज मिल पाता हमें | ||
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पोल खुल जाती कभी जो झूठ के इतिहास की | पोल खुल जाती कभी जो झूठ के इतिहास की | ||
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आपके ये आश्वासन पूरे होंगे जब कभी | आपके ये आश्वासन पूरे होंगे जब कभी | ||
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तब तलक तो सूख जाएगी नदी विश्वास की | तब तलक तो सूख जाएगी नदी विश्वास की | ||
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अनगिनत मायूसियों, ख़ामोशियों के दौर में | अनगिनत मायूसियों, ख़ामोशियों के दौर में | ||
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देखना ‘द्विज’, छेड़ कर कोई ग़ज़ल उल्लास की | देखना ‘द्विज’, छेड़ कर कोई ग़ज़ल उल्लास की |
08:42, 6 नवम्बर 2011 का अवतरण
नींव जो भरते रहे हैं आपके आवास की ज़िन्दगी उनकी कथा है आज भी बनवास की
जिन परिन्दों की उड़ाने कुन्द कर डाली गईं जी रहे हैं टीस लेकर आज भी निर्वास की
तोड़कर मासूम सपने आने वाली पौध के नींव रक्खेंगे भला वो कौन से इतिहास की
रौंदा गया कुचला गया काटा गया फिर भी उगा आदमी ऐसे कि जैसे पत्तियाँ हों घास की
वह तो उनके शोर में ही डूब कर घुटता रहा क़हक़हों ने कब सुनी दारुण कथा संत्रास की
तब यक़ीनन एक बेहतर आज मिल पाता हमें पोल खुल जाती कभी जो झूठ के इतिहास की
आपके ये आश्वासन पूरे होंगे जब कभी तब तलक तो सूख जाएगी नदी विश्वास की
अनगिनत मायूसियों, ख़ामोशियों के दौर में देखना ‘द्विज’, छेड़ कर कोई ग़ज़ल उल्लास की