"यात्रा और यात्री / हरिवंशराय बच्चन" के अवतरणों में अंतर
Pratishtha (चर्चा | योगदान) (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=हरिवंशराय बच्चन }} साँस चलती है तुझे<br> चलना पड़ेगा ही म...) |
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) |
||
(इसी सदस्य द्वारा किया गया बीच का एक अवतरण नहीं दर्शाया गया) | |||
पंक्ति 3: | पंक्ति 3: | ||
|रचनाकार=हरिवंशराय बच्चन | |रचनाकार=हरिवंशराय बच्चन | ||
}} | }} | ||
+ | {{KKCatKavita}} | ||
+ | {{KKPrasiddhRachna}} | ||
+ | <poem> | ||
+ | साँस चलती है तुझे | ||
+ | चलना पड़ेगा ही मुसाफिर! | ||
− | साँस चलती है तुझे | + | चल रहा है तारकों का |
− | चलना पड़ेगा ही मुसाफिर! | + | दल गगन में गीत गाता, |
+ | चल रहा आकाश भी है | ||
+ | शून्य में भ्रमता-भ्रमाता, | ||
+ | पाँव के नीचे पड़ी | ||
+ | अचला नहीं, यह चंचला है, | ||
+ | एक कण भी, एक क्षण भी | ||
+ | एक थल पर टिक न पाता, | ||
+ | शक्तियाँ गति की तुझे | ||
+ | सब ओर से घेरे हुए है; | ||
+ | स्थान से अपने तुझे | ||
+ | टलना पड़ेगा ही, मुसाफिर! | ||
+ | साँस चलती है तुझे | ||
+ | चलना पड़ेगा ही मुसाफिर! | ||
+ | थे जहाँ पर गर्त पैरों | ||
+ | को ज़माना ही पड़ा था, | ||
+ | पत्थरों से पाँव के | ||
+ | छाले छिलाना ही पड़ा था, | ||
+ | घास मखमल-सी जहाँ थी | ||
+ | मन गया था लोट सहसा, | ||
+ | थी घनी छाया जहाँ पर | ||
+ | तन जुड़ाना ही पड़ा था, | ||
+ | पग परीक्षा, पग प्रलोभन | ||
+ | ज़ोर-कमज़ोरी भरा तू | ||
+ | इस तरफ डटना उधर | ||
+ | ढलना पड़ेगा ही, मुसाफिर; | ||
+ | साँस चलती है तुझे | ||
+ | चलना पड़ेगा ही मुसाफिर! | ||
− | + | शूल कुछ ऐसे, पगो में | |
− | + | चेतना की स्फूर्ति भरते, | |
− | + | तेज़ चलने को विवश | |
− | + | करते, हमेशा जबकि गड़ते, | |
− | + | शुक्रिया उनका कि वे | |
− | + | पथ को रहे प्रेरक बनाए, | |
− | + | किन्तु कुछ ऐसे कि रुकने | |
− | + | के लिए मजबूर करते, | |
− | + | और जो उत्साह का | |
− | + | देते कलेजा चीर, ऐसे | |
− | + | कंटकों का दल तुझे | |
− | + | दलना पड़ेगा ही, मुसाफिर; | |
− | + | साँस चलती है तुझे | |
− | + | चलना पड़ेगा ही मुसाफिर! | |
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | शूल कुछ ऐसे, पगो में | + | |
− | चेतना की स्फूर्ति भरते, | + | |
− | तेज़ चलने को विवश | + | |
− | करते, हमेशा जबकि गड़ते, | + | |
− | शुक्रिया उनका कि वे | + | |
− | पथ को रहे प्रेरक बनाए, | + | |
− | किन्तु कुछ ऐसे कि रुकने | + | |
− | के लिए मजबूर करते, | + | |
− | और जो उत्साह का | + | |
− | देते कलेजा चीर, ऐसे | + | |
− | कंटकों का दल तुझे | + | |
− | दलना पड़ेगा ही, मुसाफिर; | + | |
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | साँस चलती है तुझे | + | |
− | चलना पड़ेगा ही मुसाफिर! | + | |
+ | सूर्य ने हँसना भुलाया, | ||
+ | चंद्रमा ने मुस्कुराना, | ||
+ | और भूली यामिनी भी | ||
+ | तारिकाओं को जगाना, | ||
+ | एक झोंके ने बुझाया | ||
+ | हाथ का भी दीप लेकिन | ||
+ | मत बना इसको पथिक तू | ||
+ | बैठ जाने का बहाना, | ||
+ | एक कोने में हृदय के | ||
+ | आग तेरे जग रही है, | ||
+ | देखने को मग तुझे | ||
+ | जलना पड़ेगा ही, मुसाफिर; | ||
+ | साँस चलती है तुझे | ||
+ | चलना पड़ेगा ही मुसाफिर! | ||
− | वह कठिन पथ और कब | + | वह कठिन पथ और कब |
− | उसकी मुसीबत भूलती है, | + | उसकी मुसीबत भूलती है, |
− | साँस उसकी याद करके | + | साँस उसकी याद करके |
− | भी अभी तक फूलती है; | + | भी अभी तक फूलती है; |
− | यह मनुज की वीरता है | + | यह मनुज की वीरता है |
− | या कि उसकी बेहयाई, | + | या कि उसकी बेहयाई, |
− | साथ ही आशा सुखों का | + | साथ ही आशा सुखों का |
− | स्वप्न लेकर झूलती है | + | स्वप्न लेकर झूलती है |
− | सत्य सुधियाँ, झूठ शायद | + | सत्य सुधियाँ, झूठ शायद |
− | स्वप्न, पर चलना अगर है, | + | स्वप्न, पर चलना अगर है, |
− | झूठ से सच को तुझे | + | झूठ से सच को तुझे |
− | छलना पड़ेगा ही, मुसाफिर; | + | छलना पड़ेगा ही, मुसाफिर; |
− | साँस चलती है तुझे | + | साँस चलती है तुझे |
चलना पड़ेगा ही मुसाफिर! | चलना पड़ेगा ही मुसाफिर! | ||
+ | </poem> |
10:15, 7 नवम्बर 2011 के समय का अवतरण
साँस चलती है तुझे
चलना पड़ेगा ही मुसाफिर!
चल रहा है तारकों का
दल गगन में गीत गाता,
चल रहा आकाश भी है
शून्य में भ्रमता-भ्रमाता,
पाँव के नीचे पड़ी
अचला नहीं, यह चंचला है,
एक कण भी, एक क्षण भी
एक थल पर टिक न पाता,
शक्तियाँ गति की तुझे
सब ओर से घेरे हुए है;
स्थान से अपने तुझे
टलना पड़ेगा ही, मुसाफिर!
साँस चलती है तुझे
चलना पड़ेगा ही मुसाफिर!
थे जहाँ पर गर्त पैरों
को ज़माना ही पड़ा था,
पत्थरों से पाँव के
छाले छिलाना ही पड़ा था,
घास मखमल-सी जहाँ थी
मन गया था लोट सहसा,
थी घनी छाया जहाँ पर
तन जुड़ाना ही पड़ा था,
पग परीक्षा, पग प्रलोभन
ज़ोर-कमज़ोरी भरा तू
इस तरफ डटना उधर
ढलना पड़ेगा ही, मुसाफिर;
साँस चलती है तुझे
चलना पड़ेगा ही मुसाफिर!
शूल कुछ ऐसे, पगो में
चेतना की स्फूर्ति भरते,
तेज़ चलने को विवश
करते, हमेशा जबकि गड़ते,
शुक्रिया उनका कि वे
पथ को रहे प्रेरक बनाए,
किन्तु कुछ ऐसे कि रुकने
के लिए मजबूर करते,
और जो उत्साह का
देते कलेजा चीर, ऐसे
कंटकों का दल तुझे
दलना पड़ेगा ही, मुसाफिर;
साँस चलती है तुझे
चलना पड़ेगा ही मुसाफिर!
सूर्य ने हँसना भुलाया,
चंद्रमा ने मुस्कुराना,
और भूली यामिनी भी
तारिकाओं को जगाना,
एक झोंके ने बुझाया
हाथ का भी दीप लेकिन
मत बना इसको पथिक तू
बैठ जाने का बहाना,
एक कोने में हृदय के
आग तेरे जग रही है,
देखने को मग तुझे
जलना पड़ेगा ही, मुसाफिर;
साँस चलती है तुझे
चलना पड़ेगा ही मुसाफिर!
वह कठिन पथ और कब
उसकी मुसीबत भूलती है,
साँस उसकी याद करके
भी अभी तक फूलती है;
यह मनुज की वीरता है
या कि उसकी बेहयाई,
साथ ही आशा सुखों का
स्वप्न लेकर झूलती है
सत्य सुधियाँ, झूठ शायद
स्वप्न, पर चलना अगर है,
झूठ से सच को तुझे
छलना पड़ेगा ही, मुसाफिर;
साँस चलती है तुझे
चलना पड़ेगा ही मुसाफिर!