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"पत्थर सा तन / पद्मजा शर्मा" के अवतरणों में अंतर

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16:35, 11 नवम्बर 2011 के समय का अवतरण


वह लड़की आती
फूलों को देखती
छूती सूंघती

मेरी ओर देखती हुई कहती
‘फूल-पत्थर में फर्क
कैसे कर सकता है कोई छूए बिना’

तब पत्थर-सा
हो जाता मेरा तन

पर खिल उठता था मन
फूल-सा।