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मेरा मौसम / विजय कुमार पंत
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10:47, 17 नवम्बर 2011
कभी अरमानों से
सोच कि "सीट" भी अपनी सीमा में
ही झुक
पति
पाती
है
काश
मेरा जीवन होता
वो रास्तों में
खाद्खादाता
खङखङाता
रिक्शा !!
जिसमें बैठ कर हम दोनों
Abha Khetarpal
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