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"उलझता जाए है दमन किसी का / मनु भारद्वाज" के अवतरणों में अंतर
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लबों पे आह थी, आँखों में आँसूं | लबों पे आह थी, आँखों में आँसूं | ||
− | 'मनु' गुज़रा है यूँ सावन किसी का | + | 'मनु' गुज़रा है यूँ सावन किसी का</poem> |
02:53, 19 नवम्बर 2011 के समय का अवतरण
उलझता जाए है दामन किसी का
ख़ुदारा देखिएगा फन किसी का
कहीं जुल्फें संवारी जा रही हैं
पुकारे है मुझे दरपन किसी का
किसी के घर पे खुशियों की फिज़ा है
सुलगता है कहीं गुलशन किसी का
मेरे सीने में तुम कहते हो दिल है
मुझे लगता है ये मदफन किसी का
हमारा घर, हमारा घर नहीं है
किसी की छत तो है आँगन किसी का
न हक छीनो किसी का ऐ लुटेरों
न लूटो इस तरह जीवन किसी का
लबों पे आह थी, आँखों में आँसूं
'मनु' गुज़रा है यूँ सावन किसी का