भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"हम सबकी निगाहों से बचाए हुए तो हैं / मनु भारद्वाज" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मनु भारद्वाज |संग्रह= }} {{KKCatGhazal‎}} <Poem> ह...' के साथ नया पन्ना बनाया)
 
(कोई अंतर नहीं)

03:12, 19 नवम्बर 2011 के समय का अवतरण

हम सबकी निगाहों से बचाए हुए तो हैं
आँखों में आंसुओं को छुपाये हुए तो हैं

इक-दूसरे के दिल में समाये हुए तो हैं
सब आसमाँ को सर पे उठाये हुए तो हैं

माना की हमसे दूर हो तुम, तुमसे दूर हम
फिर भी चिराग़-ए-इश्क जलाये हुए तो हैं

जा तो रहे हो राज़ मेरे खोलना नहीं
कुछ ऐतबार पे ही बताये हुए तो हैं

पत्थर के इस शहर में रखो एहतियात से
शीशे के महल तुमने बनाये हुए तो हैं

अब कह भी दीजियेगा 'मनु' उनसे दिल का हाल
वो अंजुमन में आपकी आये हुए तो हैं