भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"दु:ख / कुमार विकल" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कुमार विकल |संग्रह=निरुपमा दत्त मैं बहुत उदास हूँ }} दु:...)
 
 
पंक्ति 2: पंक्ति 2:
 
{{KKRachna
 
{{KKRachna
 
|रचनाकार=कुमार विकल
 
|रचनाकार=कुमार विकल
|संग्रह=निरुपमा दत्त मैं बहुत उदास हूँ
+
|संग्रह=निरुपमा दत्त मैं बहुत उदास हूँ / कुमार विकल
 
}}
 
}}
  

14:38, 19 सितम्बर 2007 के समय का अवतरण

दु:ख लड़ने के लिए

एक बहुत बड़ा हथियार है

जो पहले

पानी की भाषा में

आदमी की आँखों में आता है

और फिर

हाथों की धरोहर बन जाता है

पानी के पत्थर बनने की प्रक्रिया

आदमी के इतिहास से पहले का इतिहास है

किन्तु अब

यह प्रक्रिया

आदमी के इतनी आसपास है

कि दु:खी क्षणों में

वह

पानी से एक ऎसा हथियार बना सकता है

जो दु:खों के मूल स्रोतों को

एक सीमा तक मिटा सकता है ।