भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"मैं तुम्हें नहीं लिखूंगा / पंकज सिंह" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=पंकज सिंह |संग्रह=आहटें आसपास }} मैं तुम्हें नहीं लिखू...)
 
पंक्ति 2: पंक्ति 2:
 
{{KKRachna
 
{{KKRachna
 
|रचनाकार=पंकज सिंह
 
|रचनाकार=पंकज सिंह
|संग्रह=आहटें आसपास
+
|संग्रह=आहटें आसपास / पंकज सिंह
 
}}
 
}}
  

14:35, 19 सितम्बर 2007 का अवतरण

मैं तुम्हें नहीं लिखूंगा कि मेरी आँखें ख़राब हो गई हैं

मैं नहीं लिखना चाहता कि एक जुलूस में पिटने के बाद

मेरे दाहिने घुटने में लगातार दर्द रहता है


एक सरकारी आदमी मेरी परछाईं से ज़्यादा घंटे

मेरे इर्द-गिर्द गुज़ारता है


मैं लिखूंगा और तुम रोओगी सारी रात

कि कई-कई शामें चली जाती हैं यों ही बिना खाए


जब मैं तुम्हें लिखने बैठता हूँ

मेरी उंगलियों पर तम्बाकू के काले दाग़ चमकते हैं


मैं क़लम वापस बन्द कर देता हूँ


(रचनाकाल : 1978)