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"पराजित हो गये / शीलेन्द्र कुमार सिंह चौहान" के अवतरणों में अंतर

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के अरूण  हो गात  
 
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आ गए श्रीहीन तरूओं  
 
आ गए श्रीहीन तरूओं  
पर सुकेामल पात
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छू गए मन केा बसन्ती  
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छू गए मन को बसन्ती  
 
गुनगुनाते दिन   
 
गुनगुनाते दिन   
  

09:15, 30 नवम्बर 2011 के समय का अवतरण


लो पराजित हो गए

लो पराजित हो गए फिर
कँपकपाते दिन

ढोलकों की थाप पर
गाने लगा फागुन
बज उठी मंजीर खँझरी
पर सुहानी धुन

आ गये मिरदंग ढफ
झाँझें बजाते दिन
  
खिल उठे फिर ढाक, सेमल
के अरूण हो गात
आ गए श्रीहीन तरूओं
पर सुकोमल पात
  
छू गए मन को बसन्ती
गुनगुनाते दिन

बोल मुखरित हो उठे
फिर नेह सरगम के
कसमसाने लग गए
जड़-बन्ध संयम के

आ गए फिर प्यार का
मधुरस लुटाते दिन