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"बुत हो गया फिर / नंदकिशोर आचार्य" के अवतरणों में अंतर

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बगीचे के ठीक बीचोबीच
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था वह, फड़फड़ाता पंख
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जिस पर था जो पाखी
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अचानक उड़ गया
  
उस में भी अपना सपना
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अब कौन है साखी
तुम जिसे उकेरने लगते हो-
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कि तब जिस ने खोले थे पंख
शिल्पी जो ठहरे !
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बगीचे के ठीक बीचोबीच वह
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बुत हो गया फिर अब ?
  
पर क्या होता है उन टुकड़ों का
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(1976)
जिन्हें तुम अपने उकेरने में
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पत्थर से उतार देते हो ?
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और उस मूरत का जो-जैसी भी हो
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तुम्हारी ही पहचान होती है
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पत्थर की नहीं ?
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उन में क्या सिसकता नहीं रहता होगा
 
पत्थर का कोई
 
क्षत-विक्षत सपना अपना ?
 
हाँ, पत्थर तो उपकरण ठहरा !
 
उस का अपना क्या ?
 
सपना क्या ?
 
 
तो क्या वे
 
जिन का अपना नहीं होता कुछ
 
उपकरण हो जाते हैं
 
मूरत करने को किसी और का सपना !
 
 
(1976)
 
  
 
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15:57, 1 दिसम्बर 2011 के समय का अवतरण

बगीचे के ठीक बीचोबीच
था वह, फड़फड़ाता पंख
जिस पर था जो पाखी
अचानक उड़ गया

अब कौन है साखी
कि तब जिस ने खोले थे पंख
बगीचे के ठीक बीचोबीच वह
बुत हो गया फिर अब ?

(1976)