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20:27, 6 दिसम्बर 2011 का अवतरण

कलम में भरी है स्याही

कलम में भरी है स्याही पर निब में नहीं आती झटकना पड़ता था कई बार पहले अब तो उसका भी असर नहीं लगता है कुछ ज्यादा ही खफ़ा है मुझसे उसके इस रवैये से दुखी बहुत हूँ पर गुस्सा नहीं करता मैं कुछ देर के लिए रख देता हूँ कुछ देर बाद उठा के पता लगाता हूँ करता हूँ प्रयास कि हो जाये ठीक हो भी जाती है पर ये बताकर कि गलती मेरी थी फिर आगे बढ़ने लगता है हमारा प्रेम अनवरत....!

--Bhaskar 08:57, 6 दिसम्बर 2011 (CST)................स्वरचित कविता