भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
:निरत पुण्यचरित्र अनेक हैं।
परहितोद्यत स्वार्थ बिना कहीं,
:विरल मानव है इस लोक में॥
:::(२)
सहज तत्परता शुभ-कर्म में